सोमवार, 23 नवंबर 2015

अशोक अंजुम की ग़ज़लें


चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार


(एक)


खाना- पीना, हंसी-ठिठोली , सारा कारोबार अलग !
जाने क्या-क्या कर देती है आँगन की दीवार  अलग !

पहले इक छत के ही नीचे  कितने उत्सव होते थे,

सारी खुशियाँ पता न था यूँ कर देगा बाज़ार  अलग !

पत्नी, बहन, भाभियाँ, ताई, चाची, बुआ, मौसीजी

सारे रिश्ते एक तरफ हैं लेकिन माँ का प्यार  अलग !

कैसे तेरे - मेरे रिश्ते को मंजिल मिल सकती थी

कुछ तेरी रफ़्तार अलग थी, कुछ मेरी रफ़्तार अलग !

जाने कितनी देर तलक दिल बदहवास-सा रहता है

तेरे सब इकरार अलग हैं, लेकिन इक इनकार  अलग !

अब पलटेंगे,  अब पलटेंगे, जब-जब ऐसा सोचा है

'अंजुम जी' अपना अन्दाज़ा हो जाता हर बार  अलग !


(दो) 


झिलमिल-झिलमिल जादू-टोना पारा-पारा आँख में है
बाहर कैसे धूप खिलेगी जो अँधियारा आँख में है

यहाँ-वहाँ हर ओर जहाँ में दिलकश खूब नज़ारे हैं

कहाँ जगह है किसी और को कोई प्यारा आँख में है

एक समन्दर मन के अन्दर उनके भी और मेरे भी

मंज़िल नहीं असंभव यारो अगर किनारा आँख में है

परवत-परवत, नदिया-नदिया, उड़ते पंछी, खिलते फूल

बाहर कहाँ ढूँढते हो तुम हर इक नज़ारा आँख में है

चैन कहाँ है, भटक रहे हैं कभी इधर तो कभी उधर

पाँव नहीं थमते हैं ‘अंजुम’ इक बंजारा आँख में है


(तीन)


बड़ी मासूमियत से सादगी से बात करता है
मेरा किरदार जब भी ज़िंदगी से बात करता है

बताया है किसी ने जल्द ही ये सूख जाएगी

तभी से मन मेरा घण्टों नदी से बात करता है

कभी जो तीरगी मन को हमारे घेर लेती है

तो उठ के हौसला तब रौशनी से बात करता है

नसीहत देर तक देती है माँ उसको ज़माने की

कोई बच्चा कभी जो अजनबी से बात करता है

मैं कोशिश तो बहुत करता हूँ उसको जान लूँ लेकिन

वो मिलने पर बड़ी कारीगरी से बात करता है

शरारत देखती है शक्ल बचपन की उदासी से

ये बचपन जब कभी संजीदगी से बात करता है


(चार)


सबको चुभती रही मेरी आवारगी
मुझमें सबसे भली मेरी आवारगी

रंग सारे सजाकर विधाता ने तब

रफ़्ता-रफ़्ता रची मेरी आवारगी

वक़्त ने यूँ तो मुझसे बहुत कुछ लिया

जाने क्यों छोड़ दी मेरी आवारगी

ज़ुल्मतें-जु़ल्मतं हर तरफ ज़ुल्मतें

चाँदनी-चाँदनी मेरी आवारगी

ज़िन्दगी की डगर में जो काँटे चुभे

बन गई मखमली मेरी आवारगी

हादसों ने कसर कोई छोड़ी नहीं

मेरी रहबर बनी मेरी आवारगी

धूप में, धुन्ध में, तेज बरसात में

कब थमी, कब रुकी मेरी आवारगी


(पांच) 


कोई राजा नहीं, कोई रानी नहीं
ये कहानी भी कोई कहानी नहीं

आम जनता के सपनों का मक़तल है ये

दोस्तो ये कोई राजधानी नहीं

ये जो ख़ैरात है इसको रह ने ही दो

हमको हक़ चाहिए मेहरबानी नहीं

अश्क हों आह हों जिसमें मज़लूम की

ऐसी दौलत हमें तो कमानी नहीं

कंकरीटों की फसलें उगीं चारसू

रंग धरती का पहले सा धानी नहीं

जिनमें हो न ज़रा भी जिगर का लहू

ऐसे  शेरों के कोई भी मानी नहीं

एक बेदम नदी पूछती है मुझे

तेरी आँखों में क्यूँ आज पानी नहीं

डूबना लाज़मी था तेरी नाव का

बात पतवार की तूने मानी नहीं


(छह) 


ये सारा आलम महक रहा है, चला ये किसके हुनर का जादू
कि रफ़्ता-रफ़्ता शबाब पर है, किसी की खिलती उमर का जादू

मैं कौन हूँ, कुछ पता नहीं है, कि होश  मेरे उड़े हुए हैं

चलाया किसने ये मुस्कुराकर यूँ अपनी तिरछी नज़र का जादू

धरा जले है, गगन जले है, सुलग रहा है समूचा आलम

कि ऐसे में भी बिखर रहा है ये खूब इक गुलमुहर का जादू

ये मन में हलचल-सी हो रही है, खनक रहे हैं किसी के कंगन

नशे में मुझको डुबोता जाये वो कँपकँपाते अधर का जादू


अशोक अंजुम 


संपादक : अभिनव प्रयास ( त्रेमासिक )
स्ट्रीट २, चन्द्र विहार कॉलोनी (नगला डालचंद),
क्वार्सी बाई पास,अलीगढ 202001 (उ -प्र.)
मो. ०९२५८७७९७४४,०९३५८२१८९०७




अशोक ‘अंजुम’

(अशोक कुमार शर्मा)


  • जन्मदिन- 15 दिसम्बर 1966 (माँ ने बताया), 
  • 25 सितम्बर 1966 (काग़ज़ों पर)
  • काग़ज़ी शिक्षा - बी.एससी.,एम.ए.(अर्थशास्त्र, हिन्दी),बी.एड.
  • लेखन-विधाएँ - मुख्यतया गज़ल, दोहा, गीत, हास्य-व्यंग्य,साथ ही लघुकथा, कहानी, व्यंग्य, लेख, समीक्षा, भूमिका, साक्षात्कार, नाटक आदि
  • प्रकाशित पुस्तके-
  • 1. भानुमति का पिटारा (हास्य-व्यंग्य कविताएँ) / 2.खुल्लम खुल्ला (हास्य-व्यंग्य कविताएँ) / 3.मेरी प्रिय ग़ज़लें (ग़ज़ल संग्रह) पुरस्कृत /4.मुस्कानें हैं ऊपर-ऊपर (ग़ज़ल संग्रह) पुरस्कृत / 5.दुग्गी, चैके, छक्के (हास्य-व्यंग्य कविताएँ) / 6.अशोक अंजुम की प्रतिनिधि ग़ज़लें /7.तुम्हारे लिए ग़ज़ल (ग़ज़ल संग्रह) / 8.एक नदी प्यासी (गीत संग्रह) पुरस्कृत/ 9. जाल के अन्दर जाल मियाँ (व्यंग्य ग़ज़लें) पुरस्कृत/10. क्या करें कन्ट्रोल नहीं होता (हास्य-व्यंग्य कविताएँ) /11 . प्रिया तुम्हारा गाँव (दोहा-संग्रह) पुरस्कृत/ 12. यमराज आॅन अर्थ (नाटक संग्रह)/13. पढ़ना है (नाटक )/14. चम्बल में सत्संग(दोहा-संग्रह)/ 15.यूँ ही...(ग़ज़ल संग्रह) 
  • सम्पादित पुस्तकें:-
  • 1.श्रेष्ठ हास्य-व्यंग्य कविताएँ (हास्य-व्यंग्य कविताएँ) /2.अंजुरी भर ग़ज़लें (ग़ज़ल संकलन)/3.हास्य-व्यंग्य में डूबे, 136 अजूबे (हास्य-व्यंग्य कविताएँ)/4. हास्य भी, व्यंग्य भी (हास्य-व्यंग्य कविताएँ) /5. ग़ज़ल से ग़ज़ल तक (ग़ज़ल संग्रह) /6. रंगारंग हास्य कवि सम्मेलन (हास्य-व्यंग्य)/7. आह भी वाह भी (हास्य-व्यंग्य कविताएँ) /8. लोकप्रिय हास्य-व्यंग्य कविताएँ (हास्य-व्यंग्य कविता संक.) /9. लोकप्रिय हिन्दी ग़ज़लें (ग़ज़ल संकलन)/10. दोहे समकालीन (दोहा संकलन) /11. रंगारंग दोहे (दोहा संकलन) /12. दोहा दशक (दोहा संकलन) /13. दोहा दशक-2(दोहा संकलन) /14. दोहा दशक-3 (दोहा संकलन)/15. हँसता खिलखिलाता हास्य कवि सम्मेलन (हास्य-व्यंग्य कविताएँ) /16. व्यंग्य भरे कटाक्ष (व्यंग्य लघुकथाएँ) /17. हँसो बत्तीसी फाड़ के (हास्य-व्यंग्य कविताएँ) /18. नई सदी के प्रतिनिधि ग़ज़लकार (ग़ज़ल संकलन) /19. हँसी के रंग कवियों के संग (हास्य-व्यंग्य कविताएँ) /20.ग़ज़लें रंगबिरंगी (हास्य-व्यंग्य ग़ज़ल संग्रह) /21. व्यंग्य कथाओं का संसार (व्यंग्य लघुकथाएँ) /22. नीरज के प्रेम गीत (गीत संग्रह) /23. नई सदी के प्रतिनिधि दोहाकार (दोहा संकलन) /24.श्रेष्ठ हास्य-व्यंग्य गीत (गीत संकलन) /25. हास्य एवं व्यंग्य ग़ज़लें (हास्य व्यंग्य ग़ज़ल संकलन)/26.नए युग के बीरबल (व्यंग्य लघुकथाएँ)/27. हास्य कवि दंगल (हास्य व्यंग्य कविताएँ)/28. हिंदी के लोकप्रिय ग़ज़लकार (पद्मभूषण नीरज के साथ संपादित)/ 29.नए दौर की ग़ज़लें (ग़ज़ल संग्रह)/30.आनन्द आ गया (आनन्द गौतम की व्यंग्य कविताओं का संपादन)/31.आधुनिक कवयित्रियाँ (काव्य संकलन)/32.आधुनिक लोकप्रिय दोहाकार (दोहा संकलन) /33. शेर ग़ज़ब के ( अश्आर संकलन)
  • अशोक अंजुम: व्यक्ति एवं अभिव्यक्ति ( श्री जितेन्द्र जौहर द्वारा संपादित ) 
  • सम्पादक - अभिनव प्रयास (कविता को समर्पित त्रैमा.) 
  • सलाहकार सम्पादक- हमारी धरती (पर्यावरण द्वैमासिक)
  • अतिथि संपा -1. प्रताप शोभा (त्रैमा.) (सुल्तानपुर) का दोहा विशेषाक/ 2. खिलखिलाहट (अनि.) (सुतानपुर) का हास्य-व्यंग्य ग़ज़ल विषेशांक/ 3.सरस्वती सुमन (त्रैमा0) देहरादून का दोहा विशेषांक/ 4. हमारी धरती (द्वै0मा0) के दो जल विशेषांक तथा एक प्राकृतिक आपदा विशेषांक का अतिथि संपादन
  • अध्यक्ष-दृष्टि नाट्य मंच , अलीगढ़ / सचिव - संवेदना साहित्य मंच, अलीगढ़/पूर्व सचिव- हरीतिमा पर्यावरण सुरक्षा मंच, अलीगढ़/ सदस्य- बोर्ड आॅफ एडवाइजर्स-1999(अमेरिकन बायोग्राफिक्स इंस्टी. अमेरिका) 
  • सम्मानोपधियाँ- विशिष्ट नागरिक, राष्ट्र भाषा गौरव, हास्य-व्यंग्य अवतार, श्रेष्ठ कवि, लेखकश्री, काव्यश्री, साहित्यश्री, समाज रत्न, हास्यावतार, मेन आफ द इयर, साहित्य शिरोमणि......आदि दर्जनों सम्मानोपाधियाँ 
  • पंकज उधास (चर्चित गायक), श्री साहब सिंह वर्मा (तत्कालीन मुख्यमंत्री ),ज्ञानी जैलसिंह (भू.पू.राष्ट्र पति) श्री मुलायम सिंह यादव (त.मुख्यमंत्री, उ.प्र.), सांसद शीला गौतम (अलीगढ़),श्री आई.एस.पर्सवाल (महाप्रबंधक एन.टी.पी.सी. दादरी), श्री कन्हैयालाल सर्राफ(चर्चित उद्योगपति, मुम्बई), महामहिम के.एम.सेठ.(राज्यपाल छ.ग.),श्री रवेन्द्र पाठक (महापौर,कानपुर ) लेफ्टि.कर्नल श्री एस.एन.सिन्हा (पूर्व राज्यपाल असाम, जम्मू-कश्मीर) श्री टी. वेंकटेश ( कमिश्नर , अलीगढ ) इत्यादि गणमान्य हस्तियों द्वारा विशिष्ट समारोहों में सम्मानित।
  • पुरस्कार-श्रीमती मुलादेवी काव्य-पुरस्कार (भारत भारती साहित्य संस्थान) द्वारा ‘मेरी प्रिय ग़ज़लें’ पुस्तक पर 1995/- स्व. रुदौलवी पुरस्कार (मित्र संगम पत्रिका, दिल्ली) /-दुश्यंत कुमार स्मृति सम्मान-1999 (युवा साहित्य मंडल, गाज़ियाबाद )-सरस्वती अरोड़ा स्मृति काव्य पुरस्कार-2000 (भारत-एषिआई साहित्य अका., दिल्ली )/- डाॅ0 परमेश्वर गोयल व्यंग्य षिखर सम्मान-2001 ( अखिल भारतीय साहित्य कला मंच , मुरादाबाद )/-रज़ा हैदरी ग़ज़ल सम्मान-2005 ( सृजनमंच, रायपुर (छ.ग.)/- साहित्यश्री पुरस्कार-2009, डाॅ.राकेशगुप्त, ग्रन्थायन प्रकाशन, अलीगढ़/- स्व. प्रभात शंकर स्मृति सम्मान-2010, नमन प्रकाशन तथा माध्यम संस्था, लखनऊ/- विशाल सहाय स्मृति सम्मान-2010, मानस संगम, कानपुर/- मालती देवी-विलसन प्रसाद सम्मान-2010,अतरौली /.फणीश्वरनाथ रेएाु स्मृति सम्मान-2011, वाग्वैचित्र्य मंच,अररिया (बिहार)से ‘जाल के अन्दर जाल मियाँ’ पुस्तक पर/- राष्ट्रधर्म गौरव सम्मान -2012, राष्ट्रधर्म प्रकाशन, लखनऊ,‘प्रिया तुम्हारा गाँव’ पुस्तक पर/-सेवक स्मृति सम्मान-2012, साहित्यिक संघ, वाराणसी /-हिन्दी सेवी सम्मान-2013, हिन्दी साहित्य विकास परिषद्, धनबाद (झारखण्ड)/- दुश्यंत स्मृति सम्मान-2013 एअन्तर्राष्ट्रीय साहित्य कला मंच, मेरठ/स्व.सरस्वती सिंह हिन्दी विभूति सम्मान-2013,कादम्बरी, जबलपुर/नीरज पुरस्कार-2014ए (1 लाख 1 हज़ार रुपए) अलीगढ़ कृषि प्रदार्शनी द्वारा
  • अन्य. अलीगढ़ एंथम के रचयिता - अनेक गायकों द्वारा ग़ज़ल, गीत गायन/विभिन्न नाटकों में अभिनय व गीत तथा स्क्रिप्ट लेखन/कवि सम्मेलनों में हास्य-व्यंग्य तथा गीत, ग़ज़ल, दोहों के लिए चर्चित / संयोजन व संचालन भी/- दूरदर्षन के राष्ट्रीय प्रसारण के साथ ही सब टी.वी,एन.डी टी.वी, ई.टी.वी, लाइव इण्डिया,तरंग चैनल आदि अनेक चैनल्स के साथ ही आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से प्रसारण/ ई.टी.वी के एक लोकप्रिय हास्य कार्यक्रम में जज/ अनेक षोध ग्रन्थों में प्रमुखता से उल्लेख/सैकड़ों समवेत संकलनों में तथा देष की अधिकांष चर्चित पत्रिकाओं व समाचार पत्रों में सैकड़ों रचनाएँ प्रकाशित/विभिन्न रेखांकन पुस्तकों व पत्रिकाओं के आवरण पर प्रकाशित
  • सम्प्रति-सन्त पिफदेलिस स्कूल, ताला नगरी, रामघाट रोड, अलीगढ़ -202001 
  • सम्पर्क-गली.2,चंद्रविहार कालोनी;नगला डालचन्द, क्वारसी बाईपास, अलीगढ़-202 001 ,
  • मोबाइल नं.- 09258779744/ 09358218907
  • ईमेल : ashokanjumaligarh@gmail.com 
  • ब्लॉग : ashokanjum.blogspot.in

सोमवार, 16 नवंबर 2015

डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा की रचनाएं


चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार


ताँका कविताएँ..


 (एक)

निशा ने कहा
भोर द्वारे सजाए
निराशा नहीं
तारक आशा के हैं
चाँद आये न आए ।


(दो) 

सूरज कहे
ऐसा कर दिखाओ
व्याकुल -मना
वीथियाँ हों व्यथित
कभी तुम ना आओ ।


(तीन) 

कविता मेरी
बस तेरा वन्दन
तप्त पन्थ हों
तप्त पथिक मन
सुखदायी चन्दन |


(चार)

मैं मृण्मयी हूँ
नेह से गूँथ कर
तुमने रचा
अपना या पराया
अब क्या मेरा बचा |


(पांच) 

तुम भी जानो
ईर्ष्या विष की ज्वाला
फिर क्यूँ भला
नफ़रत को पाला
प्यार को न सँभाला |

(छह)

चाहें न चाहें
हम कहें न कहें
नियति -नटी
बस यूँ ही नचाए
रंग सारे दिखाए ।


सेदोका कविताएँ ...


(एक)

उड़ो परिंदे !
पा लो ऊँचे शिखर
छू लो चाँद -सितारे,
अर्ज़ हमारी-
इतना याद रहे
बस मर्याद रहे !

(दो)

जो तुम दोगे
वही मैं लौटाऊँगी
रो दूँगी या गाऊँगी ,
तुम्हीं कहो न
बिन रस ,गागर
कैसे छलकाऊँगी ?

(तीन)

सज़ा दी मुझे
मेरा क्या था गुनाह
फिर मुझसे कहा
अरी कविता
गीत आशा के ही गा
तू भरना न आह !

(चार)

आई जो भोर
बुझा दिए नभ ने
तारों के सारे दिए
संचित स्नेह
लुटाया धरा पर
किरणों से छूकर।

(पांच)

मन -देहरी
आहट सी होती है
देखूँ, कौन बोलें हैं ?
आए हैं भाव
संग लिये कविता
मैंनें द्वार खोले हैं ।

(छह)

अकेली चली
हवा मन उदास
कितनी दुखी हुई
साथी जो बने
चन्दन औ' सुमन
सुगंध सखी हुई ।

(सात)

मन से छुआ
अहसास से जाना
यूँ मैंने पहचाना
मिलोगे कभी
इसी आस जीकर
मुझको मिट जाना ।

(आठ)

बूँद-बूँद को
समेट कर देखा
सागर मिल गया
मैं सींच कर
खिला रही कलियाँ
चमन खिल गया।

(नौ)

जीवन-रथ
विश्वास प्यार संग
चलते दो पहिये
समय -पथ
है सुगम ,दुखों की
बात ही क्या कहिए।

(दस)

मेरे मोहना
उस पार ले चल
चलूँगी सँभलके
दे  ज्ञान दृष्टि
मिटे अज्ञान सारा
ऐसे मुझे मोह ना ।

कुण्डलियाँ 


(एक)

दिन ने खोले नयन जब ,बड़ा विकट था हाल ,
पवन,पुष्प,तरु ,ताल ,भू ,सबके सब बेहाल |
सबके सब बेहाल ,कुपित कुछ लगते ज्यादा ,
ले आँखों अंगार , खड़े थे सूरज दादा |

घोल रहा विष कौन .गरज कर जब वह बोले ,

लज्जित मन हैं मौन , नयन जब दिन ने खोले || 

                                                                                 
(दो)

नन्हीं बूँदें नाचतीं , ले हाथों में हाथ ,                              
पुलकित है कितनी धरा ,मेघ सजन के साथ |
मेघ सजन के साथ ,सरस हैं सभी दिशाएँ ,                              
पवन पत्तियों संग , मगन मन मंगल गाएँ |
अब अँगना के फूल , ठुमक कर नाचें कूदें ,
भिगो गईं मन आज , धरा संग नन्हीं बूँदें || 

जीवन में उत्साह से, सदा रहे भरपूर|
निर्मलता मन में रहे ,रहें कलुष से दूर||


डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 


एच -604 , प्रमुख हिल्स ,छरवाडा रोड
वापी ,जिला - वलसाड
गुजरात (भारत )
पिन - 396191
ईमेल:jyotsna.asharma@yahoo.co.in
sharmajyotsna766@gmail.com



डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा



  • जन्म स्थान : बिजनौर (उ0प्र0)
  • शिक्षा : संस्कृत में स्नातकोत्तर उपाधि एवं पी-एच0डी0शोध विषय : श्री मूलशंकरमाणिक्यलालयाज्ञनिक की संस्कृत नाट्यकृतियों का नाट्यशास्त्रीय अध्ययन |
  • प्रकाशन : ‘यादों के पाखी’(हाइकु-संग्रह), ‘अलसाई चाँदनी’ (सेदोका –संग्रह ) एवं ‘उजास साथ रखना ‘(चोका-संग्रह) में स्थान पाया |
  • विविध राष्ट्रीय,अंतर्राष्ट्रीय (अंतर्जाल पर भी) पत्र-पत्रिकाओं ,ब्लॉग पर  यथा– हिंदी चेतना,गर्भनाल ,अनुभूति ,अविराम साहित्यिकी रचनाकार, सादर इंडिया,उदंती,लेखनी, यादें,अभिनव इमरोज़ ,सहज साहित्य ,त्रिवेणी ,हिंदी हाइकु ,विधान केसरी ,प्रभात केसरी ,नूतन भाषा-सेतु आदि में हाइकु,सेदोका,ताँका ,गीत ,कुंडलियाँ ,बाल कविताएँ ,समीक्षा ,लेख आदि विविध विधाओं में अनवरत प्रकाशन |
  •  संपर्क: H-604 ,प्रमुख हिल्स ,छरवाडा रोड, वापी जिला- वलसाड , गुजरात (भारत).पिन- 396191
  •  ईमेल: Jyotsna.asharma@yahoo.co.in
  • Sharmajyotsna766@gmail.com

सोमवार, 9 नवंबर 2015

ज्योति पर्व: डॉ. हरिवंशराय बच्चन की रचनाएं


चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार

आज फिर से


आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ

है कहाँ वह आग जो मुझको जलाए,
है कहाँ वह ज्वाल मेरे पास आए,

रागिनी, तुम आज दीपक राग गाओ,
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ।

तुम नई आभा नहीं मुझमें भरोगी,
नव विभा में स्नान तुम भी तो करोगी,

आज तुम मुझको जगाकर जगमगाओ,
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ।

मैं तपोमय ज्योति की, पर, प्यास मुझको,
है प्रणय की शक्ति पर विश्वास मुझको,

स्नेह की दो बूँद भी तो तुम गिराओ,
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ।

कल तिमिर को भेद मैं आगे बढूँगा,
कल प्रलय की आँधियों से मैं लडूँगा,

किंतु मुझको आज आँचल से बचाओ,
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ।


आत्मदीप


मुझे न अपने से कुछ प्यार
मिट्टी का हूँ छोटा दीपक
ज्योति चाहती दुनिया जबतक
मेरी, जल-जल कर मैं उसको देने को तैयार

पर यदि मेरी लौ के द्वार
दुनिया की आँखों को निद्रित
चकाचौध करते हों छिद्रित
मुझे बुझा दे बुझ जाने से मुझे नहीं इंकार

केवल इतना ले वह जान
मिट्टी के दीपों के अंतर
मुझमें दिया प्रकृति ने है कर
मैं सजीव दीपक हूँ मुझ में भरा हुआ है मान

पहले कर ले खूब विचार
तब वह मुझ पर हाथ बढ़ाए
कहीं न पीछे से पछताए
बुझा मुझे फिर जला सकेगी नहीं दूसरी बार


डॉ. हरिवंशराय बच्चन  


  • उपनाम: बच्चन
  • जन्म: 27 नवम्बर-1907
  • निधन: 18 जनवरी-2003
  • जन्म स्थान: इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) भारत
  • कुछ प्रमुख कृतियाँ: मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, मिलन यामिनी, प्रणय पत्रिका, निशा निमन्त्रण, दो चट्टानें।
  • विविध: हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में गणना। सिने स्टार अमिताभ बच्चन के पिता। "दो चट्टानें" के लिये 1968 का साहित्य अकादमी पुरस्कार।

ज्योति पर्व: यह दीप अकेला-अज्ञेय


चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार

गाता गीत जिन्हें फिर..


यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता, पर
इसको भी पंक्ति को दे दो।
यह जन है : गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गाएगा
पनडुब्बा : ये मोती सच्चे फिर कौन कृति लाएगा?
यह समिधा : ऐसी आग हठीला बिरला सुलगाएगा।
यह अद्वितीय : यह मेरा : यह मैं स्वयं विसर्जित :

यह दीप, अकेला, स्नेह भरा,
है गर्व भरा मदमाता, पर
इस को भी पंक्ति दे दो।

यह मधु है : स्वयं काल की मौना का युग-संचय,
यह गोरस : जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत पय,
यह अंकुर : फोड़ धरा को रवि को तकता निर्भय,
यह प्रकृत, स्वयंभू, ब्रह्म, अयुत:
इस को भी शक्ति को दे दो।

यह दीप, अकेला, स्नेह भरा,
है गर्व भरा मदमाता, पर
इस को भी पंक्ति को दे दो।

यह वह विश्वास, नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा,
वह पीड़ा, जिस की गहराई को स्वयं उसी ने नापा,
कुत्सा, अपमान, अवज्ञा के धुँधुआते कड़वे तम में
यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक, अनुरक्त-नेत्र,
उल्लंब-बाहु, यह चिर-अखंड अपनापा।
जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय
इस को भक्ति को दे दो।

यह दीप, अकेला, स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता, पर
इस को भी पंक्ति को दे दो।


सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"



  • जन्म: 07 मार्च, 1911
  • निधन: 04 अप्रैल, 1987
  • उपनाम: अज्ञेय
  • जन्म स्थान: कुशीनगर, देवरिया, (उत्तरप्रदेश) भारत 
  • प्रमुख कृतियाँ: हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, इन्द्र-धनु रौंदे हुए थे , आंगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार
  • विविध: कितनी नावों में कितनी बार नामक काव्य संग्रह के लिये 1978 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित। आँगन के पार द्वार के लिये 1964 का साहित्य अकादमी पुरस्कार

सोमवार, 2 नवंबर 2015

महेंद्र भटनागर के गीत


चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार



गाओ कि जीवन..

.
गाओ कि जीवन - गीत बन जाये !
.
हर क़दम पर  आदमी  मजबूर है,
हर  रुपहला  प्यार-सपना  चूर है,
आँसुओं के सिन्धु में   डूबा  हुआ
आस-सूरज   दूर,  बेहद  दूर है !
                   गाओ कि कण-कण मीत बन जाये !
.
हर तरफ़  छाया अँधेरा  है  घना,
हर हृदय हत,  वेदना  से है सना,
संकटों का  मूक  साया  उम्र भर
क्या रहेगा  शीश पर  यों ही बना ?
                   गाओ,  पराजय - जीत बन जाये !
.
साँस पर  छायी विवशता  की घुटन,
जल रही है  ज़िन्दगी भर कर जलन,
विष भरे   घन-रज कणों से है भरा
आदमी की   चाहनाओं   का गगन,
                   गाओ कि दुख - संगीत बन जाये !


मोह-माया..

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सोनचंपा-सी तुम्हारी याद  साँसों में  समायी है !
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          हो किधर तुम मल्लिका-सी रम्य तन्वंगी,
          रे कहाँ अब  झलमलाता रूप  सतरंगी,
मधुमती-मद-सी तुम्हारी मोहिनी रमनीय छायी है !
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          मानवी प्रति कल्पना की कल्प-लतिका बन,
          कर गयीं जीवन जवा-कुसुमों  भरा उपवन,
खो सभी, बस, मौन मन-मंदाकिनी हमने बहायी है !
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          हो किधर तुम , सत्य मेरी मोह-माया री,
          प्राण की आसावरी,  सुख धूप-छाया  री,
राह जीवन की  तुम्हारी चित्रसारी  से सजायी  है !


रात बीती..

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याद रह-रह आ रही है,
रात  बीती जा रही है !
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ज़िन्दगी के आज इस  सुनसान में
जागता हूँ   मैं   तुम्हारे ध्यान में
          सृष्टि सारी सो गयी है,
          भूमि लोरी गा रही है !
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झूमते हैं चित्र  नयनों में  कयी
गत तुम्हारी बात हर लगती नयी
          आज तो गुज़रे दिनों की
          बेरुख़ी भी  भा रही  है !
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बह रहे हैं हम  समय की धार में,
प्राण ! रखना, पर भरोसा प्यार में,
          कल खिलेगी उर-लता जो
          किस  क़दर मुरझा रही है !
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भोर होती है..

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और अब आँसू बहाओ मत
                   भोर होती है !
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दीप सारे  बुझ  गये
                   आया  प्रभंजन,
सब सहारे  ढह गये
                   बरसा प्रलय-घन,
हार, पंथी ! लड़खड़ाओ मत
                    भोर होती है !
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बह रही बेबस  उमड़
                   धारा विपथगा,
घोर अँधियारी  घिरी
                   स्वच्छंद  प्रमदा,
आस सूरज की मिटाओ मत
                   भोर होती है !


कौन हो तुम..

                                                                               
कौन हो तुम, चिर-प्रतीक्षा-रत,
आधी अँधेरी रात में ?
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उड़ रहे हैं घन तिमिर के
सृष्टि के इस छोर से उस छोर तक,
मूक इस  वातावरण को
देखते  नभ के सितारे एकटक,
कौन हो तुम, जागतीं जो इन सितारों के घने संघात में ?
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जल रहा यह दीप किसका
ज्योति अभिनव ले कुटी के द्वार पर,
पंथ पर  आलोक  अपना
दूर तक बिखरा रहा विस्तार भर,
कौन है यह दीप,जलता जो अकेला,तीव्र गतिमय वात में ?
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कर रहा है आज कोई
बार-बार प्रहार मन की बीन पर,
स्नेह काले लोचनों से
युग-कपोलों पर रहा रह-रह बिखर,
कौन-सी ऐसी व्यथा है, रात में जगते हुए जलजात में ?
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यह न समझो..


यह न समझो कूल मुझको मिल गया
आज भी जीवन-सरित मँझधार में हूँ !
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          प्यार मुझको धार से
          धार के  हर वार से
          प्यार है  बजते  हुए
          हर लहर के तार से,
यह न समझो घर सुरक्षित मिल गया
आज भी  उघरे हुए  संसार में  हूँ !
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          प्यार भूले  गान से
          प्यार हत अरमान से
          ज़िन्दगी में हर क़दम
          हर  नये  तूफ़ान से,
यह न समझो इंद्र - उपवन मिल गया
आज भी  वीरान में, पतझार  में हूँ !
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          खोजता हूँ नव-किरन
          रुपहला जगमग गगन,
          चाहता  हूँ   देखना  
          एक प्यारा-सा  सपन,
यह न समझो चाँद मुझको मिल गया
आज भी चारों तरफ़ अँधियार में हूँ !


जिजीविषा


जी रहा है  आदमी
प्यार ही की चाह में !
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पास उसके गिर रही हैं बिजलियाँ,
घोर गह-गह कर घहरती आँधियाँ,
          पर, अजब विश्वास ले
          सो रहा है  आदमी

          कल्पना की छाँह में !
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पर्वतों की सामने ऊँचाइयाँ,
खाइयों की घूमती गहराइयाँ,
          पर, अजब विश्वास ले
          चल रहा है  आदमी
          साथ पाने  राह में !
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बज रही हैं मौत की शहनाइयाँ,
कूकती  वीरान हैं  अमराइयाँ,
          पर, अजब विश्वास ले
          हँस  रहा है  आदमी
          आँसुओं में, आह में !


महेंद्र भटनागर


Retd. Professor
110, BalwantNagar, Gandhi Road,
GWALIOR — 474 002 [M.P.] INDIA
M - 81 097 30048
Ph.-0751- 4092908
E-Mail : drmahendra02@gmail.com


महेंद्र भटनागर



  • जन्म- 26 जून, 1926, झाँसी (उ.प्र.) भारत। 
  • शिक्षा- एम.ए., पी-एच. डी. (हिंदी)।
  • संप्रति- अध्यापन, मध्य-प्रदेश महाविद्यालयीन शिक्षा / शोध-निर्देशक : हिंदी भाषा एवं साहित्य। 
  • कृतियाँ- 30 कविता संग्रह और 11 आलोचना ग्रंथों के रचयिता डॉ. महेंद्र भटनागर ने रेखा चित्र, तथा बाल व किशोर साहित्य की रचना भी की है। उनका समग्र साहित्य संकलित हो चुका है और कविताएँ अनेक विदेशी भाषाओं एवं अधिकांश भारतीय भाषाओं में अनूदित होकर पुस्तकाकार में प्रकाशित हो चुकी हैं। व कुछ पत्रिकाओं के संपादन से भी जुड़े रहे हैं। अनेक छात्रों व विद्वानों द्वारा आपकी कृतियों के ऊपर अनेक अध्ययन प्रस्तुत किए गए हैं।
  • पुरस्कार- सम्मान मध्य-भारत एवं मध्य-प्रदेश की कला व साहित्य-परिषदों द्वारा सन 1952, 1958, 1960, 1989 में पुरस्कृत; मध्य-भारत हिंदी साहित्य सभा, ग्वालियर द्वारा 'हिंदी-दिवस 1979' पर सम्मान, 2 अक्तूबर 2004 को, 'गांधी-जयंती' के अवसर पर, 'ग्वालियर साहित्य अकादमी'-द्वारा 'डा. शिवमंगलसिंह' सुमन'- अलंकरण / सम्मान, मध्य-प्रदेश लेखक संघ, भोपाल द्वारा 'डा. संतोष कुमार तिवारी - समीक्षक-सम्मान' (२००६) एवं अन्य अनेक सम्मान। 
  • जालघर :  www.rachnakar@blogspot.com  
  • ईमेल : drmbhatnagargwl@rediffmail.com