सोमवार, 9 नवंबर 2015

ज्योति पर्व: यह दीप अकेला-अज्ञेय


चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार

गाता गीत जिन्हें फिर..


यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता, पर
इसको भी पंक्ति को दे दो।
यह जन है : गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गाएगा
पनडुब्बा : ये मोती सच्चे फिर कौन कृति लाएगा?
यह समिधा : ऐसी आग हठीला बिरला सुलगाएगा।
यह अद्वितीय : यह मेरा : यह मैं स्वयं विसर्जित :

यह दीप, अकेला, स्नेह भरा,
है गर्व भरा मदमाता, पर
इस को भी पंक्ति दे दो।

यह मधु है : स्वयं काल की मौना का युग-संचय,
यह गोरस : जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत पय,
यह अंकुर : फोड़ धरा को रवि को तकता निर्भय,
यह प्रकृत, स्वयंभू, ब्रह्म, अयुत:
इस को भी शक्ति को दे दो।

यह दीप, अकेला, स्नेह भरा,
है गर्व भरा मदमाता, पर
इस को भी पंक्ति को दे दो।

यह वह विश्वास, नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा,
वह पीड़ा, जिस की गहराई को स्वयं उसी ने नापा,
कुत्सा, अपमान, अवज्ञा के धुँधुआते कड़वे तम में
यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक, अनुरक्त-नेत्र,
उल्लंब-बाहु, यह चिर-अखंड अपनापा।
जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय
इस को भक्ति को दे दो।

यह दीप, अकेला, स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता, पर
इस को भी पंक्ति को दे दो।


सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"



  • जन्म: 07 मार्च, 1911
  • निधन: 04 अप्रैल, 1987
  • उपनाम: अज्ञेय
  • जन्म स्थान: कुशीनगर, देवरिया, (उत्तरप्रदेश) भारत 
  • प्रमुख कृतियाँ: हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, इन्द्र-धनु रौंदे हुए थे , आंगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार
  • विविध: कितनी नावों में कितनी बार नामक काव्य संग्रह के लिये 1978 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित। आँगन के पार द्वार के लिये 1964 का साहित्य अकादमी पुरस्कार

2 टिप्‍पणियां:

  1. अज्ञेय जी की रचना को पढ़वाने हेतु हार्दिक आभार और उजास-पर्व की मंगलकामनाएँ सुबोध जी !

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  2. आपको भी बहुत बधाई और मंगलकामनाएँ..!

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